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सूचना आवेदकों पर दर्ज हो रहे फर्जी मुकदमे

मुजरिम का किस्सा
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बिहार में सूचना आवेदकों को फर्जी मुकदमे में फँसा कर जेल भेजने की प्रथा सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के साथ ही शुरू हो गयी थी. नागरिक अधिकार मंच द्वारा लगातार बार-बार ऐसे मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है. कहने को माननीय मुख्यमंत्री महोदय ने ऐसे पीड़ितों के लिए टोलफ्री नंबर की व्यवस्था की, पर लोक सूचना पदाधिकारियों के मन में क़ानून का भय नहीं है और वे अपने कानूनी अधिकार के प्रति सजग नागरिकों को प्रताड़ित करने का कोई मौक़ा नहीं चूकते. हाल में ऐसे तीन उदाहरण हमारे संज्ञान में हैं, जिनमें फर्जी मुकदमे दर्ज कर सूचना आवेदकों को सलाखों के पीछे कर दिया गया है और उनके परिजन न्याय के लिए भटक रहे हैं.

१. बक्सर के “अनिल कुमार दूबे” जो विधि के छात्र रहे हैं और हाल ही में न्यायिक सेवा हेतु उनका चयन हुआ है, ने राजपुर प्रखंड के अंचलाधिकारी से सूचना के अधिकार के तहत कुछ जानकारी माँगी. अंचलाधिकारी द्वारा सूचना नहीं दिए जाने पर उन्होंने प्रथम अपीलीय पदाधिकारी तथा तदोपरांत राज्य सूचना आयोग में अपील की. अंचलाधिकारी महोदय अनुसूचित जाति के हैं, सो उन्होंने इसका फायदा उठाते हुए सूचना आवेदक पर राजपुर थाने में अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर दिया (राजपुर थाना काण्ड संख्या 128/2012/ dated 16.06.2012), जिससे ये छः माह तक अनभिज्ञ रहे. पुलिस पदाधिकारियों ने बिना इनका पक्ष जाने अनुसंधान एवं पर्यवेक्षण का कार्य भी संपन्न कर दिया. मुकदमा के बारे में ये अपनी गिरफ्तारी होने के बाद ही जान पाए.

२. मोतिहारी जिलान्तर्गत संग्रामपुर थाना में राजेन्द्र सिंह पर आर्म्स एक्ट का झूठा मुकदमा (संग्रामपुर थाना काण्ड संख्या 158/2012) दर्ज किया गया. उन्होंने पुलिस पदाधिकारियों से ही सूचना के अधिकार के अंतर्गत विभिन्न सूचनाएं माँगी थी. फर्जी मुकदमे दर्ज हो जाने पर इन्होने राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष भी गुहार लगाई थी. पर दर्ज फर्जी मुकदमे में इन्हें जेल भेज दिया गया.

३. लखीसराय जिलान्तर्गत सूर्यगढ़ा थाना में अवकाश प्राप्त सैनिक और सूचना अधिकार कार्यकर्ता कमलेश्वरी मेहता पर सूचना मांगने के कारण फर्जी मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया. अभी लगभग एक हफ्ते पहले ही इन्होने राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष अपने ऊपर दर्ज फर्जी मुकदमे के बारे में गुहार लगाई थी.

एक तरफ राज्य सरकार पारदर्शिता और न्याय के साथ विकास की बात कह रही है और दूसरी तरफ सूचना आवेदकों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं. क्या ऐसे ही होगा न्याय के साथ विकास ?

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