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जंगलराज के समय औरंगाबाद-पटना सड़क के किनारे हर एक किलोमीटर पर एक बोर्ड टांग दिया गया था कि “यह सड़क केन्द्रीय पुल का है और इसको बनाने की जिम्मेवारी भारत सरकार की है”. उस समय हमलोग दाउदनगर से पटना की यात्रा सात घंटे में पूरी करते थे और पटना पहुँचते-पहुँचते जान निकल जाती थी. ऐसा महसूस होता था जैसे हमलोग आदमी न होकर कोई वस्तु हों जिसे गाड़ी पर लाद दिया गया और वह गिरते-पिटते-पटकाते पटना पहुंचा दिया गया हो. अगले दिन भर आराम करने की सख्त जरुरत होती थी. भला हो नीतीश जी का जिन्होंने शासन संभालते ही इस सड़क का कायाकल्प किया और हमलोगों के पटना यात्रा को आरामदायक बनाया. पर, समय के साथ सड़क का उचित मेंटेनेंस नहीं होने या अन्य कारणों से पुनः इस सड़क की हालत जंगलराज जैसी ही हो गई है.
औरंगाबाद से महाबलीपुर तक सड़क की हालत बिल्कुल खस्ता है,
पुनः विक्रम से नौबतपुर तक एक तो सड़क सिंगल लेन की है ही, टूट-फूट और किनारे गड्ढे रहने के कारण काफी खतरनाक भी हो गई है,
एक और सड़क जिसका वैकल्पिक उपयोग पटना यात्रा के दौरान किया जाता है- “दुल्हिन बाजार से नौबतपुर भाया शहररामपुर” की स्थिति भी बहुत खराब है और इसमें पग-पग पर अवैध ब्रेकर हैं,
फिर नौबतपुर से भुसौला पुल (एम्स) पटना तक की सड़क भी बिल्कुल खराब हो गई है.
यानी कुल मिलाकर औरंगाबाद से पटना पहुँचने के क्रम में सड़क की हालत बहुत खराब हो गई है और पुनः हमलोग आदमी से वस्तु बनने की स्थिति की ओर अग्रसर हो रहे हैं, पर इच्छा आदमी बने रहने की है.
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